what changes after four years of demonetisation, see the journey of cash to digital economy | नोटबंदी के 4 साल में क्या बदला, देखिए कैश से डिजिटल इकोनॉमी तक का सफर | Hindi - OmIndia

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Monday, November 09, 2020

what changes after four years of demonetisation, see the journey of cash to digital economy | नोटबंदी के 4 साल में क्या बदला, देखिए कैश से डिजिटल इकोनॉमी तक का सफर | Hindi

 नोटबंदी एक ऐसा फैसला है जिसने इकोनॉमी ही नहीं बल्कि आम आदमी की रोजमर्रा की चीजों को बदलकर रख दिया. हम यहां पर नोटबंदी से देश में आए कुछ बदलावों के बारे में जिक्र करेंगे, जो सिर्फ आंकड़ों पर आधारित है.

नंबर 1. डिजिटल पेमेंट से लेन-देन बढ़ा

नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक और सरकार ने लोगों को कैश पर निर्भरता कम करने और डिजिटल की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित किया तो इसका असर बड़े पैमाने पर दिखा.

1. सरकार ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए बाकायदा डिजिटल इंडिया कैम्पेन चलाया.
2. कोरोना महामारी से पहले फरवरी में सबसे ज्यादा डिजिटल ट्रांजैक्शन का रिकॉर्ड भी बनाया.
3. फरवरी में BHIM UPI के जरिए डिजिटल ट्रांजैक्शन 132.32 करोड़ तक पहुंच गया, इस दौरान 2.2 लाख करोड़ रुपये का लेन देन किया गया.
4. अक्टूबर 2020 के दौरान देश में 207.16 करोड़ रुपये का डिजिटल ट्रांजैक्शन हुआ.
5. NPCI के दिए गए आंकड़ों के मुताबिक अबतक 3.3 लाख करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन हुआ
6. डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए UPI से 189 बैंक अबतक जुड़ चुके हैं

अब एक नजर नोटबंदी के बाद से अबतक डिजिटल ट्रांजैक्शन पर. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक डिजिटल ट्रांजैक्शन की संख्या और वैल्यू दोनों की बड़ी तेजी से बढ़ी हैं.

डिजिटल पेमेंट से लेन-देन बढ़ा
साल                      डिजिटल ट्रांजैक्शन        वैल्यू (रुपये)
नवंबर 2016               83 करोड़           8.89 लाख करोड़                 
अगस्त 2020             347 करोड़          100.5 लाख करोड़


UPI पेमेंट्स में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
1. 2016-17 में UPI से लेन देन 6952 करोड़ रुपये का रहा था, जो कि वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 21 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया.
2. अक्टूबर 2020 में मंथली UPI ट्रांजैक्शन बढ़कर 200 करोड़ रुपये के पार चला गया, जिससे ये पता चलता है कि UPI का इस्तेमाल देश भर में तेजी से बढ़ा है
3. UPI के जरिए अक्टूबर 2020 तक 2900 करोड़ ट्रांजैक्शन हो चुके हैं.

     नोटबंदी के 4 साल में क्या बदला, देखिए 'कैश' से 'डिजिटल' इकोनॉमी तक का सफर     

नंबर 2. टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ीं


नोटबंदी लागू होने के एक साल बाद ही टैक्सपेयर्स की संख्या में 33 लाख की बढ़ोतरी हुई. मतलब साफ है कि देश में जो लोग अबतक टैक्स चोरी कर रहे थे, वो भी टैक्स के दायरे में आना शुरू हो गए. 

2016 के नवंबर से 2017 के 31 मार्च तक कुल 1.96 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए,जबकि वित्त वर्ष 2015-16 में 1.63 करोड़ और वित्त वर्ष 2014-15 में 1.23 करोड़ रिटर्न दाखिल किए गए थे. 

इसके बाद वित्त वर्ष 2018 में 3.28 करोड़ भारतीयों ने इनकम टैक्स भरा. CBDT के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2019 में 5.78 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल हुए.

नंबर 3. फॉर्मल इकोनॉमी की ओर कदम बढ़े


नोटबंदी के बाद से EPFO, ESIC के सब्सक्राइबर्स की संख्या तेजी से बढ़ी. ये इस बात का संकेत है कि जो लोग अबतक कहीं नहीं थे, अब ऐसे लोग फॉर्मल इकोनॉमी से जुड़ रहे हैं.

1. सितंबर 2017 से नवंबर 2018 के बीच EPFO में 1.1 करोड़ नए एनरोलमेंट जुड़े.
2. वित्त वर्ष 2017-18 में ESIC रजिस्ट्रेशन में 55 परसेंट तक की बढ़ोतरी हुई

नंबर 4. टैक्स कंप्लायंस बढ़ा


नोटबंदी के बाद CBDT की ओर से ऑपरेशन क्लीन मनी चलाया गया, इसमें उन लोगों की पहचान की गई जिनकी कमाई तो मोटी थी, लेकिन टैक्स नहीं भर रहे थे.

1. 13,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के सेल्फ असेसमेंट टैक्स की वसूली नॉन फाइलर्स से हुई
2. 3.04 लाख ऐसे लोगों की पहचान हुई जिन्होंने 10 लाख रुपये या इससे ज्यादा पैसा डिपॉजिट किया, लेकिन IT रिटर्न दाखिल नहीं किया
3. 2.09 लाख ऐसे लोगों ने सेल्फ असेसमेंट टैक्स के रूप में 6531 करोड़ रुपये चुकाए

नंबर 5. कॉर्पोरेट टैक्स कंप्लायंस


नोटबंदी के बाद से उन कॉर्पोरेट्स पर भी शिकंजा कसा जो टैक्स भरने से अबतक बचते आ रहे थे.

1. 2013-14 के मुकाबले 2018-19 में टैक्सपेयर रिटर्न में 35 परसेंट की बढ़ोतरी हुई
2. वित्त वर्ष 2016-17 में 8.03 लाख कॉर्पोरेट टैक्सपेयर्स ने रिटर्न दाखिल किया था
3. वित्त वर्ष 2017-18 में कॉर्पोरेट टैक्सपेयर्स ने 17 परसेंट ज्यादा 9.42 लाख रिटर्न दाखिल किया
4. वित्त वर्ष 2018-19 में कॉर्पोरेट टैक्सपेयर्स ने 9.64 करोड़ टैक्स रिटर्न भरे हैं

नंबर 6. रियल एस्टेट में काला धन खत्म हुआ


नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट सेक्टर में होने वाली काली कमाई पर नकेल कस गई. नोटबंदी से पहले रियल एस्टेट सेक्टर काला धन छिपाने का सबसे सुरक्षित ठिकाना माना जाता था. 

लेकिन नोटबंदी के बाद
इस सेक्टर में लेन देन में पारदर्शिता आई. जिससे खरीदारों को रियल एस्टेट सेक्टर पर भरोसा लौटा. 



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